हुरड़ा का शिलालेख


रैगर जाति की एक प्राचीन बावड़ी ग्राम हुरड़ा जिला भिलवाड़ा में मौजूद है ओर वहां पर शिलालेख भी मोजूद है । वहां रैगरों के लगभग 150 परिवार हैं । 70-80 वर्ष के बुजुर्ग लोगों का काना उदेणिया की बावड़ी के विषय में कहना है कि हमारे बाप-दादा जब जीवित थे तब इस बावड़ी के बारे में कहते थे कि यह बावड़ी एक हजार वर्ष पुरानी है । यह बावड़ी रैगरों के मोहल्‍ले से लगी हुई है और भग्‍नावस्‍था में है । इस बावड़ी से जुड़ी लगभग 40 बीघा जमीन है जो आज हुरड़ा के रैगरों के कब्‍जे में है । किसी समय इस जमीन की सिंचाई इसी बावड़ी से होती थी । इस बावड़ी के आगे एक छोटा-सा खम्‍भानुमा पत्‍थर खड़ा है जिस पर अक्षर खुदे हुए है । सरल भाषा में तथा काफी स्‍पष्‍ट है । हमने उस शिलालेख को पढ़ा जो निम्‍नानुसार है-
”श्री रामजी मति संवत् 1062 वि. तिति वैशाख बुद 2… करणाजी की जागीरी में रैगर काना…. बावड़ी हम की जाति उदीएया रूपेशु पन्‍नाजी कारीगर की…. सिला न लिखत ब्राह्मण गंगाराम साह हरजीराम तातेड़ नै देवा के बेटै काना नै कराई ।”
इस शिलालेख से स्‍पष्‍ट है कि इस बावड़ी का निर्माण काना रैगर, गोत्र उदेणिया ने सम्‍वत् 1062 में करवाया था । इस संबंध में एक प्रसिद्ध दोहा भी है-

‘कान खुदाई बावड़ी, गढ़पत हुरड़ा गांव’

इस शिलालेख से स्‍पष्‍ट है कि यह शिलालेख 1003 वर्ष प्राचीन है । इस शीलालेख से यह भी प्रमाणित है कि यह जाति 1003 वर्ष पूर्व भी रैगर नाम से पुकारी जाती थी ।
हुरड़ा तहसील मुख्‍यालय है । यह उपखण्‍ड गुलाबपुरा जिला भिलवाड़ा में स्थित हैं । कुछ वर्षों पहले हुरड़ा उपखण्‍ड था जो बाद में गुलाबपुरा स्‍थानान्‍तरित हो गया । यह एक पुराना गांव है । हुरड़ा गांव के बीच में शिवजी का एक प्राचीन मन्‍दिर है । जिसके सामने एक शिलालेख मौजूद है । इस शिलालेख से प्रमाणित है कि यह मन्दि‍र दो हजार वर्ष प्राचीन है । इससे यह भी स्‍वत: प्रमाणित हो जाता है कि हुरड़ा गांव को बसे हुए दो हजार वर्षों से भी अधिक समय हा चुका है । ऐसा बताया जाता है कि मराठों के शासनकाल में हुरड़ा जिला मुख्‍यालय था । मराठों के अच्‍छी नस्‍ल के घोड़े थे जिनको जौ इसी गांव से ले जाकर खिलाया जाता था । इस गांव में उत्‍तम किस्‍क की जौ की पैदावार होती थी । यहां की जौ हरड़े के समान पीली तथा बड़ी होती थी । इसलिए इस गांव का नाम पहले हरड़ा था तथा बाद में अपभ्रंस होकर हुरड़ा हो गया । इन सभी तथ्‍यों से निष्‍कर्ष निकाला जा सकता है कि हुरड़ा गांव दो हजार से भी अधिक समय पहले से बसा हुआ था । वर्तमान में हुरड़ा में रैगरों की आबादी, काना उदेणिया की बावड़ी तथा शिलालेख को देखकर कहा जा सकता है कि इस गांव की स्‍थापना से ही रैगर इस गांव में रहते आए हैं । यह स्‍वाभाविक बात है कि काना उदेणिया ने बावड़ी बनवाई उससे पहले से ही उनके पूर्वज वहां रहते रहे होंगे । सम्‍पूर्ण पहलुओं पर विचार करने से यह स्‍पष्‍ट हो जात है कि कम से कम दो हजार वर्षों पहले रैगर जाति के लोग हुरड़ा गांव में रहते थे । हुरड़ा का शिलालेख रैगर जाति की प्राचीनता को स्‍थापित करने के संबंध में बहुत ही महत्‍वपूर्ण और ठोस आधार है । इस शिलालेख से पूर्व ऐसा ठोस प्रमाण कहीं भी उपलब्‍ध नहीं था । यह शिलालेख रैगर जाति की उत्‍पत्ति, प्राचीनता, व्‍यवस्‍था तथा आर्थिक स्थिति आदि पहलुओं पर प्रकाश डालता है । रैगर जाति के सम्‍बन्‍ध में यह एक महत्‍वपूर्ण शिलालेख है ।

(साभार- चन्‍दनमल नवल कृत ‘रैगर जाति : इतिहास एवं संस्‍कृति’)

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