[vc_row type=”in_container” full_screen_row_position=”middle” scene_position=”center” text_color=”dark” text_align=”left” overlay_strength=”0.3″][vc_column column_padding=”no-extra-padding” column_padding_position=”all” background_color_opacity=”1″ background_hover_color_opacity=”1″ column_shadow=”none” width=”1/1″ tablet_text_alignment=”default” phone_text_alignment=”default” column_border_width=”none” column_border_style=”solid”][vc_text_separator title=”श्री रमेश चन्द्र जलूथरिया”][vc_column_text]श्री रमेशचन्द जलुथरिया का जन्म एक सम्पन्न परिवार में श्री रामजीलाल के घर 18 मई 1940 को हुआ । इनकी प्राथमिक शिक्षा सरकारी स्कूलों में ही हुई क्योंकि उन दिनों पब्लिक स्कुल नहीं होते थे ।
इनका विवाह केवल 14 वर्ष की उम्र में सन् 1954 में श्री छोटूरामजी बारोलिया निवासी बीडनपुरा दिल्ली की सुपुत्री देवकी रानी के साथ हुआ । यह परिवार भारत पाकिस्तान के विभाजन पर सन् 1947 में पाकिस्तान के कराची शहर से विस्थापित होकर दिल्ली आया था । इस समय देवकी रानी केवल तीन वर्ष की थी । (इनकी लिखित पुस्तक ”आसौज में दिवाली” के कवर पेज पर इन्होंने अपनी पत्नी श्रीमति देवकी रानी को दीप मालाओं में मध्य हाथों में दीप लिए दर्शाया है)।
सन् 1959 में पंजाब युनिवर्सिटी से मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की, परन्तु इसी वर्ष इनका गौना होने के कारण यह आगे की पढाई से वंचित हो गये ।
सन् 1962 में इन्होंने मोटर पार्टस बनाने की फैक्ट्री लगाई, परन्तु 1965 में भारत-पाकिस्तान की लड़ाई के कारण इनकी रकम व्यापारियों द्वारा दबा जी गई जिसे कारण इन्हें बहुत हानि उठानी पड़ी और फलस्वरूप अपना कारोबार भी बंद करना पड़ा । कारोबार के समय यह रैगर शिक्षित समाज के सक्रिय सदस्य थे और दान स्वरूप बहुत सी पुस्तकें रैगर शिक्षित समाज के पुस्तकालय को दी ।
सन् 1966 में पोस्ट एण्ड टेलीग्राफ के टेलीफोन विभाग (आजकल महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड के नाम से जाना जाता है) में क्लर्क के पद पर नौकरी करना प्रारम्भ की तथा सन् 2000 में सीनियर सैक्शन सुपरवाईजर के पद से रिटायर हुए ।
प्रारम्भ से ही इन्हे चित्रकारी व लिखने की रूची थी । रिटायरमैन्ट के पश्चात् इन्होंने ”असौज में दिवाली” तथा ”गंगा भागीरथ और रैगर” नाम की दो पुस्तकें लिखी तथा इन्हें छपवाकर समाज में वित्रित की ।
प्राय: यह देखा गया है कि रैगर समाज में लोग अनावश्यक कार्यो पर फिजूल खर्च कर देते हैं, परन्तु पुस्तक खरीदकर पढ़ना नहीं चाहते, इसलिए लेखक को न तो उचित पारिश्रमिक मिल पाता है ओर ना ही उसे प्रोत्साहन मिलता है । इनके द्वारा लिखित कुछ लेख और अन्य सामग्री नहीं छपवाई जा सकी।
कुल पृष्ठ 120
मुल्य 225/-
2018
कुल पृष्ठ 168
मुल्य 350/-
2018
रमेश चन्द्र जलुथरिया
5555/74, रैगर पुरा, करोल बाग, नई दिल्ली
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