रैगर समाज के खर्चीले व दिखावे वाले रीति रिवाजो संबंधी सुझाव

रैगर जाति में एक जमाने के रीति रिवाजो को जानने के लिये यह आवश्यक है कि इस समाज के विभिन्न संगठनो व समाज सुधारको द्वारा प्रकाशित सुधारो का अध्ययन किया जाये। इन रीति रिवाजो के विस्तृत अध्ययन करने के लिये मेने दिल्ली में रहने वाले रैगर जाति के समाज सुधारको द्वारा प्रकाशित र्खचीले रीति रिवाजो में सुझावो का अध्ययन किया तो पाया कि दिल्ली में रैगर समाज में रीति रिवाज निभाने का यह परिणाम निकला कि इन की आर्थिक अवस्था चरमरा गई और इन्हे अपने मकानो को पाकिस्तान से आये विस्थपितो और अन्य समाज के लोगो को बेच कर अन्य स्थानो पर जाना पड़ा। मकानो के बेचने से जो रूपया इनके पास आया उस को इन्होने अपने र्खचीले व आडम्बर पूर्ण रीति रिवाजो पर खर्च करना प्रारम्भ कर दिया। यही कारण है कि दिल्ली के रैगर पुरा, बीड़न पुरा, देव नगर में रैगर समाज के घर केवल नाम मात्र को ही रह गये है। आज जो रह गये है उन में भी या तो किरायेदार फंसे हुये है या स्वयम् अपने मकानो में ही किरायेदार के रूप में गली में चारपाई डाल कर जीवन बसर कर रहे है जो अत्यंत ही दुर्भाग्य पूर्ण है। इस संबंध में समाज के जागरूक लोग चिन्तित भी रहे है। इस जागरूकता के कारण ही दिल्ली प्रान्तीय रैगर स्वयम् सेवक मण्डल, देव नगर, नई दिल्ली-5, पंजीकृत संख्या 5006, जिस के अध्यक्ष चन्दन सिंह चान्दोलिया थे, ने ‘रीति रिवाज सुधार सभा‘ के सदस्यो से मिल कर 7 जुलाई 1991 को ‘दिल्ली निवासी रैगर समाज के रीति रिवाजो का संशोधन’ नामक पुस्तिका दानदाताओ के सहयोग से प्रकाशित करवाई थी। इन संशोधित रीति रिवाजो को आम लोगो द्धारा अपनाने के लिये रैगर समाज के कई कलाकारो ने विभिन्न स्थानो पर समारोह भी आयोजित किये गये थे। इस पुस्तिका के प्राकथ्न में लिखा गया है, ‘अपने समाज में प्रचलित रीति रिवाजो को
ध्यान से देखे तो पता चलता है कि हमने इन को इतना खर्चीला बना दिया है और लगातार बनाये जा रहे है कि आज हमारे समाज की आर्थिक अवस्था जर्जर हो रही है। एक ओर मंहगाई बढ रही है, दूसरी ओर हम अपने रीति रिवाजों को अधिक खर्चीला बनाते जा रहे है। महिलाये भी अधिक व्यय करने के लिये पुरूष वर्ग को बाध्य कर रही है। वे डरी हुई है कि कहीं उन का होने वाला दामाद, समधी-समधन अथवा उन के रिशतेदार, उन की लेन-देन से नाराज होकर बना बनाया संबंध न तोड़ दे। समाज में इज्जत व स्वाभिमान बनाये रखने के लिये हर व्यक्ति अपनी हैसियत से अधिक व्यय करने को बाध्य हो रहा है तथापि मिथ्या लोकाचार का शिकार हो रहा है। हर परिवार की एक ही चिन्ता है कि उन की बहन-बेटी के लिये अच्छा वर मिल जाये, चाहे उन्हे कुछ भी खर्च करना पड़े। मध्यम तथा निम्न वर्ग के लोगो के लिये तो यह बहुत ही कठिन कार्य हो गया है। बेटी के हाथ पीले करने में लोग कर्ज के नीचे दब रहे हैं, बहुतो की जायदाद बिक रही है। गरीबों की बेटिया घर बैठी अधिक उम्र की हो रही है, उन के माता-पिता चिन्ताओ में घुल रहे है। इन समस्याओं का हल कहीं बाहर नही, स्वयम् हमारे अपने हाथो में है। एक अच्छा समाज वही होता है जिस में गरीब, अमीर सभी इज्जत से एक साथ रह सके। उपरोक्त समस्याओ के हल के लिये ‘दिल्ली प्रान्तीय रैगर स्वयम् सेवक मण्डल’ ने अपने साथ दिल्ली पंचायत के पदाधिकारियों, दिल्ली क्षेत्र में कार्यरत सामाजिक संस्थाओ एवं संगठनो के पदाधिकारियों, महिला प्रकोष्ठो, सत्संग सभाओ एवं प्रमुख विचारशील गणमान्य व्यक्तियों को आमन्त्रित कर उन की सहमति से रैगर समाज के ‘जन्म से लेकर मरण’ तक के रीति रिवाजों का सरल व कम खर्च वाला बनाकर इस पुस्तक में प्रकाशित किये है। आप सभी बहनो, भाईयो से विनम्र निवेदन है तथा यह समय की मांग भी है इस पुस्तक में लिखे गये ‘संशोधित रीति रिवाजों को स्वयम् अपनाये तथा समाज में प्रचारित करे। इन रिवाजो को अपनाने से अपना, अपने बच्चो का तथा समूचे रैगर समाज का भविष्य उज्जवल होगा‘ – निवेदक: दिल्ली प्रान्तीय रैगर स्वयं सेवक मण्डल, पंजीकृत, देवनगर, नई दिल्ली’।

‘दिल्ली निवासी रैगर जाति के संशोधित रीति रिवाज’

  1. शिशु जन्म. (1) जच्चा के गीत: शिशु के जन्म पर महिलाओं द्धारा जच्चा के पारम्परिक गीत गाये जाने चाहिये। (2) नामकरण संस्कार: नवजात शिशु ;बालक/बालिकाओ का नाम, साधारण रूप से, ज्योतिष अनुसार रख लेना चाहिये। परन्तु यदि विशष रूप से नामकरण करवाना हो तो, कृपया घ्यान रखा जाये की प्रत्येक समारोह में केवल अपने परिवार-जन, खास खास सम्बन्धी तथा गली बस्ती वालो को ही आमन्त्रित किया जाये, अधिक को नही। यह ‘सभा’ सुझाव देती है कि कन्या के नामकरण को भी समान रूप से महत्व दिया जाना चाहिये। (3) कुआ पूजन:कुआ पूजन परम्परागत रूप से पूजा जाना चाहिये। यह ‘सभा’ सुझाव देती है कि बालिका के जन्म पर भी समान रूप से कूआ पूजन किया जाना चाहिये। (4) चूड़ा पोतड़ा: शिशु जन्म पर, जच्चा के पीहर वालो की ओर से केवल जच्चा तथा बच्चे के ही वस्त्रादि भेजे जाने चाहिये, अन्य किसी के लिये नही। जच्चा के पीहर वालो के अतिरिक्त किसी अन्य रिशतेदार द्वारा चूड़ा पोतड़ा नही भेजा जाना चाहिये। (5) गुड़ दिखानाः गुड़ दिखाने की प्रथा का आरम्भ, शिशु जन्म की सूचना देने हेतु हुआ था। यह ‘सभा’ सुझाव देती है कि बच्चा होने पर, एक या दो व्यक्ति जच्चा के पीहर वालो को यह शुभ सूचना दे आये। गुड़ दिखाने वाला समारोह नही किया जाना चाहिये।
  2. लड़के अथवा लड़की की सगाई. (1) लड़के अथवा लड़की को रोकना: लड़के/लड़की को रोकने की प्रथा हमारे समाज में कंुछेक सालो से प्रचलित हंुई है जो दिन पर दिन विशाल रूप धारण कर एक बड़े समारोह जैसी शक्ल लेती जा रही है। ‘रीति रिवाज सुधार सभा’ में उपस्थित सभी महिलाओ तथा पुरूषो ने संजीदगी से विचार कर निष्कर्ष निकाला है ा इस रस्म को करना एक अनावश्यक फिजूल खर्ची करना है। ष्‘सभा’ ने सर्व सम्मत फैसला किया है कि लड़के अथवा लड़की को रोकने की प्रथा तुरन्त बन्द होनी चाहिये। साथ ही सुझाव दिया है कि सगाई रस्म आयोजित करने से पूर्व लड़के/लड़की दोनो पक्ष वाले स्त्री एवं पुरूषों को एक दूसरे के बारे में भली भांति पूछताछ व देखभाल कर पूर्ण संतुष्टी कर लेने के उपरान्त, सीधे सगाई रस्म ही करनी चाहिये। (2) सगाई रस्म: ‘रीति रिवाज सुधार सभा’ ने विचार विमर्श करके यह निष्कर्ष निकाला है कि सगाई रस्म में लड़के के साथ उस के सवासने, परिवार जन तथा खास सम्बन्धी ही लड़की वाले के घर जांये। ये अपने साथ लड़की के लिये केवल एक जोड़ी वस्त्र, थोड़े फल व मिठाई कुल एक घरेलू परात लेकर जांये। यदि दोनो पक्ष चाहे तो लड़का व लड़की अधिक से अधिक एक-एक सोने की अंगूठी का, जिस का वजन अधिक से अधिक पांच ग्राम हो, आदान प्रदापन कर सकते है। अंगूठी के अलावा और कोई जेवर/आभूत्राण साथ न ले जाये। यह ‘सुधार सभा’ सगाई के समय लड़के/लड़की का आपस में उपहार पहनाने तथा लड़के द्वारा लड़की की मांग भरने को घोर विरोध करती है। यह ‘सभा’ सगाई के बाद व शादी से पूर्व संजारा, राखी तथा टीका, भैया दूज आदि भेजे जाने का विरोध करती है। विवाह उपरान्त राखी और टीका आदि लेकर लड़की स्वय अपने पीहर जाये, इस का समर्थन किया जाता है। यह ‘सभा’ अनुरोध करती है कि सगाई के समय अतिथि सत्कार में बेटी वाला केवल साधारण चाय आदि से सत्कार करे, भोजन नही खिलाया जाना चाहिये। सगाई की विदाई में जीवित व्यक्तियों को ही सम्मानित किया जाये। लड़के के दादा, नाना व पिता को अधिक से अधिक 101/- रूपये दिये जाये। लड़के को नारियल के साथ 101/- रूपये दिये जाये। शेष सभी नजदीकी रिशतेदारो को अधिक से अधिक 11/- रूपये से सम्मानित किया जाये। लड़के के केवल एक सवासने को तौलिये से सम्मानित किया जाये। लड़के को तथा उस के जीवित दादा, नाना व पिता को चादर द्वारा सम्मानित किया जाये, शेष अन्य रिशतेदारो को नही। वस्त्रादि की देन के संबंध में पुरूष वर्ग में लड़के के दादा, नाना, पिता व स्वयं लड़के के ही वस्त्रादि दिये जाये। महिला वर्ग में लड़के की मां, बहन, दादी, नानी व सगी भाभियो के ही वस्त्र दिये जाये इस से अधिक ओर किसी के नहीं। विवाह की तिथि निश्चित करने के संबंध में यह ‘सभा’ यह भी सुझाव देती है कि सगाई के समय ही पक्के विवाह की तिथि भी निश्चित कर घोषित कर देनी चाहिये। यदि किन्ही कारणो से विवाह की तिथि सगाई वाले दिन निश्चित न की जा सके तो दोनो पक्षो के कुछेक व्यक्ति बैठकर विवाह की तिथि निश्चित कर सकते है परन्तु इस के लिये किसी प्रकार का समारोह न किया जाये। परन्तु सगाई व विवाह में कम से कम अन्तर रखना उचित होगा।
  3. विवाह संस्कार. (1) बन्दड़ा/बन्दड़ी को बान बैठाना: हमारे समाज में लड़के/लड़की को जैसे पहले बान बैठाते आये हैं वैसे ही परम्परागत रूप में बन्दड़ा अथवा बन्दड़ी के सांस्कृतिक गीतो आदि के मध्य बान बैठाना चाहिये। बन्दड़े कसे जनेउ धारण कराना चाहिये। (2) बन्दौरा: इस सभा ने सुझाव दिया है कि बन्दड़ा या बन्दड़ी को बन्दौरा खिलाने अथवा उनके घर पर बन्दौरा भेजने के स्थान पर विवाह उपरान्त वर-वधू को अपने घर पर आमन्त्रित कर भोजन कराया जाये तो यह अधिक अच्छा होगा। इस प्रथा को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये। (3) तेल: तेल साधारण रूप से अपने खास भाई बन्द व सगी बहन बेटियों के मध्य ही मनाया जाना चाहिये। यह ‘सभा’ सुझाव देती है कि तेल की रोटी रिशतेदारो के यहां नही भेजी जाये। (4) चाक: चाक में महिलाये कुम्हार से केवल एक जेगड़; मटका और घड़ा ही लाये। अच्छे पारम्परिक गान गा कर खुशी मनाये परन्तु महिलाओ का नाच गाना केवल महिलाओं के मध्य चार दीवारी अथवा टैन्ट मे ही होना चाहिये, बाहर सड़क पर या कुम्हार के यहां बिल्कुल नही। (5) भात नौतना: भात नौतने की प्रथा भी परम्परागत रूप से ही होती रहनी चाहिये। यह महिलाओ के मंगलगान आदि के मध्य साधारण रूप से होनी चाहिये, इस में ढोल ताशे आवश्यक नही है। परन्तु यदि कोई ढोल ताशे लाना जरूरी समझे तो इस बात का विशष ध्यान रखा जाये कि महिलाओ का नृत्य आदि महिलाओ के मध्य चार दीवारी अथवा टैन्ट में होना चाहिये, बाहर सड़को पर नही। गीत अच्छे गाये जाने चाहिये, अश्लील नहीं। (6) भात ले जाना: जिस लड़के अथवा लड़की का विवाह हो रहा हो उस के नाना, मामा, ही भात लेकर जांये, अन्य कोई रिशतेदार नही। भात देने हेतु नाना, मामा के परिवार जन ही जाये, ये अपने साथ अन्य किसी को नही ले जाये। भात में अपनी बहन, बहनोई, उन के विवाहित तथा अविवाहित बच्चो तथा जीवित सास ससुर के वस्त्रादि लेकर जाये। भानजे की बहु के लिये भी सामथ्र्य अनुसार वस्त्र ले जा सकते है। एक सवासना तथा एक सवासनी को भी मनाया जाना जरूरी है। यह ‘सभा’ सुझाव देती है कि अन्य रिशतेदारो, मित्रो और गली मौहल्ले वालो को दिये जाने वाले पछवड़े न दिये जाये। यह एक फिजूल खर्ची है, इस पर प्रतिबन्ध लगना चाहिये।
  4. बारात ले जाना. (1) विशेष:‘रीति रिवाज सुधार सभा’ सभी सजातीय बन्धुओ से निवेदन करती है कि विवाह दो दिन के स्थान पर केवल एक दिन में किया जाये अर्थात बारात की विदाई फेरो के बाद उसी दिन होनी चाहिये। प्रथम संुझाव: बारत वधू के घर साय 6-7 बजे के मध्य अवश्य पंहुच जाये जिससे रात्रि 11-12 बजे तक विदा की जा सके। दूसरी संुझाव: वर-वधू दोनो पक्ष वाले चाहे तो बारात दिन में ले जा सकते हैऔर वह सांय काल तक विदा हो सकती है। (2) विवाह में बारातियों की संख्या: बारातियों में केवल दूल्हा के परिवारजन, खास खास सगे सम्बन्धी तथा गली बस्ती वाले ;पुरूष वर्ग ही जाये। दूर के जानने वालो की अनावश्यक संख्या बारात में नही बढाई जाये। यदि बारात में कोई भाई महिलाओ को ले जाना चाहे तो कृपया ध्यान रखे कि विवाह में आई हुई बहन बेटियों व उन के बच्चे ही बारात में सम्मिलित हो, अन्य कोई नहीं। (3) विवाह में मण्ढेतियों की संख्या: लड़की के विवाह में उसके परिवार वाल अपने खास खास सगे सम्बन्धियों और गली बस्ती को ही आमन्त्रित करे। अन्य दूर के जानने वालो की अनावश्यक संख्या न बढाये। नोट: सगाई व विवाह में बारातियों और मण्ढेतियों; स्त्री/पुरूषो की संख्या अत्यधिक बढ गई है। यह ‘सभा’ सभी भाई बहनो से विशेष अनुरोध करती है की बढती हंुई संख्या पर अंकुश लगाया जाये। इस से बड़े बड़े टैन्ट-शामियानो तथा अधिक भोजन की तैयारी पर होने वाले फिजूल खर्च बचेंगे। कम संख्या होने पर सभी सुखी से भोजन करेंगे।(4) पडलाः। पडले में दुल्हन के लिये केवल दो जोड़ी वस्त्र ही ले जाना चाहिये, इस से अधिक नही। जेवर में एक जोड़ी नई चांदी की पाजेब व अधिक से अधिक एक मंगल सूत्र ले जाना पर्याप्त है। परन्तु ये चीजे लड़की के लिये ही होनी चाहिये; उस से वापस न ली जाये। एक परात में फल मिठाई तथा दूसरी में दंुल्हिन के वस्त्रादि व श्रंगार की चीजे, कुल दो घरेलू परात ले जाना चाहिये। (5) विवाह की रस्मे
    ःतोरण, स्वागत, कलश, आरता: बारात बेटी वाले के द्वार पर पंहुचने पर सर्वप्रथम दूल्हा तोरण मारे, तोरण के बाद सवासने का, दूल्हा का तथा दूल्हा के पिता आदि खास खास जन का परम्परागत रूप से स्वागत किया जाना चाहिये। इस के उपरान्त कलश और आरता होना चाहिये। (6) बरणी: बरणी यथा पूर्व परम्परागत रूप से होनी चाहिये। (7) वरमाला: कृपया ध्यान दे कि दूल्हा दूल्हन वरमाला केवल एक बार पहनाये। कुर्सियों पर बैठने से पूर्व पहनावे अथवा फेेरो के समय, परन्तु केवल एक बार पहनाये, बार बार नही।(8) भोजन: दूल्हा दूल्हन, बाराती व मण्ढेती सभी भोजन करें। (9) पाणि-ग्रहण संस्कार (10)
    ः दूल्हा दूल्हन के भोजन कर लेने उपरान्त तुरन्त पाणिग्रहण संस्कार आयोजित किये जाने चाहिये। कन्या दान आदि रस्मे पूर्ववत होती रहनी चाहिये। (11) पगधोई: फैरो के तुरन्त बाद पलंग बिछा कर पगधोई करनी चाहिये। सर्वप्रथम दुल्हन के मामाजी बाली से पगधोई करें, इस के उपरान्त माता-पिता और भाई आदि केवल परिवारजन ही पगधोई करे। (12) मूण की बैठक: पगधोई के साथ ही साथ दूसरी ओर मूण की बैठक आयोजित कर लाग-बाग के पैसे उठा लेने चाहिये। (13) बरातियों की विदाई: यह ‘सभा’ सुझाव देती है कि विदाई के समय जो बाराती उपस्थित हो केवल उनको ही तिलक कर के, सामथ्र्य अनुसार देकर विदा किया जाये। अनुपस्थित बारातियों के लिये विदाई न दी जाये। नोट: – बारातियों की बिदाई भोजन करने के तुरन्त बाद भी की जा सकती है। (14) दूल्हा की विदाई: दूल्हा की विदाई झुआरी कर पूर्ववत गोले आदि सिद्ध होती रहनी चाहिये। (15) दूल्हा के पिता ;समधी जी की विदाई:
    समधीजी के लिये विदाई में केवल एक खोल होनी चाहिये। वे स्वयम् ओढे अथवा किसी बड़े को मनवाये, परन्तु खोल केवल एक होनी चाहिये, अधिक नही। नोट:- विदाई में रंग या हल्दी के स्थान पर केवल गुलाल का प्रयोग करे। (16) विवाह संस्कारों में गालियों के लिये अंगूठियां ले जाना हमारी परम्परा नही है। कुछ लोग इस प्रथा को प्रचलित करने का प्रयत्न कर रहे हैं, परन्तु ‘सभा’ इस का विरोध करती है। (17) उपहार स्वरूप दी गई वस्तुये, दहेज तथा उन की गिनाई: यह ‘सभा’ सुझाव देती है कि उपहार स्वरूप दी गई वस्तुये, दहेज अपनी अपनी सामथ्र्य अनुसार ही दी जाये। दी जाने वाली सभी वस्तुओं की दो प्रतियां तैयार कर वर-वधू दोनो पक्ष वालो के हस्ताक्षर करने के उपरान्त एक प्रति वधू पक्ष के पास रहे तथा दूसरी प्रति वर पक्ष को दे दी जाये। उपहार स्वरूप दी जाने वाली वस्तुओं का आकार प्रकार व ‘मेक’ आदि विवरण दिया जाना चाहिये परन्तु उन का मुल्य न लिखा जाये और ना ही कुल योग का टोटल गिनाया जाये। उपहार में दी गई वस्तुओं की वधू के घर अथवा वर के घर प्रदर्शनी न लगाई जाये। (18) विवाह में वस्त्रादि की देन: पुरूष वर्ग में लड़के के दादा, नाना, पिता व स्वयम् लड़के के ही वस्त्रादि दिये जाये। म्हिला वर्ग में लड़की की मां, बहन, दादी, नानी व सगी भाभियों के ही वस्त्र दिये जाये, इस से अधिक ओर किसी के नहीं दिये जाये। (19) विवाह उपरान्त दुल्हन से मिलने जाना: यह देखा गया है कि विवाह के दूसरे ही दिन लड़की पक्ष के स़्त्री/पुरूष बड़ी संख्या में लड़की से मिलने को जाते है। वर प़क्ष को उन सब की आवभगत के लिये जलपान का प्रबन्ध करना पड़ता है। प्रत्युतर में लड़की वालो को, लड़की तथा समधी जी को नकद देना पड़ता है। यह ‘सभा’ इस प्रथा का विरोध करती है। यह एक फिजूल खर्ची है चुंकि केवल दो चार दिन के बाद ही लड़की, पीहर मिलने को आ जाती है।
  5. बारात की रोटी/रिसेप्शन व रोटी की आड खोलना: इस ‘सभा’ ने सर्वसम्मत फैसला किया है कि ‘रोटी की आड’ नामक प्रथा समाप्त की जाये। यदि बेटे वाला अपनी खुशी से बारात को रोटी/रिसेप्शन देता है तो अन्य सम्बन्धियों की भांति ही वधू के परिवार को भी आमन्त्रित करे। वधू के परिवार वाले केवल स्वयम् जाये, अपने साथ समाज वालो को तथा सम्बन्धियों को न ले जांये। यहां यह भी स्पष्ट किया जाता है कि वधू पक्ष वाले, वर पक्ष को, बारात की रोटी खिलाने हेतुं विवश न करे।
  6. पीळे की आढ खोलना: (1) ‘सभा’ ने सर्व सम्मत फैसला किया है कि भविष्य में लड़की की विदाई के समय ही पीळा औढा कर इस रस्म को सम्पन्न कर दिया जाये। (2) जिन लड़कियों का विवाह हो चंुका है तथा अभी तक उन को पीळा नही औढाया गया है, उनको शिशु जन्म पर चूड़े पोतड़े के साथ पीला भेज दिया जाये। (3) जिन लड़कियों के बच्चे बड़े हो गये हो तथा पीळा अभी तक न औढाया गया हो, उन के बच्चो के विवाह में भात लेकर जाये तब ओढाया जा सकता है।
  7. अन्तिम संस्कारः (1) कफन ले जाना: देखा गया है कि मृतक स्त्री/पुरूष के लिये पूरी दो पोशाके ले जाने लगे है – यह व्यर्थ और अनावश्यक खर्च है। यह ‘सभा’ इस का विरोध करती है। मृतक के लिये कफन ही पर्याप्त है और वह भी स्त्री मृतक के पीहर वाले/पुरूष के ससुराल वाले ही ले जाये। अन्य सम्बन्धी खिचड़ी में नकद सहयोग दे। (2) नहानः यह ‘सभा’ सुझाव देती है कि ‘नहान’ घर पर ही होना चाहिये, शमशान भूमि पर जाकर नही। पहले पानी का अभाव होता था अतः जंहा पानी उपलब्ध हो ऐसे स्थान पर बाहर जाना पड़ता था। अब ऐसी कोई दिक्कत नही रही। शोक प्रकट करने हेतु महिला वर्ग मृतक के घर पर जाये चाहे मृतक बड़ा-बूढा ही क्यो न हो। (3) मृत भोज: यह ‘सभा’ मृत भोज का घोर विरोध करती है। ‘तीसरे’ के दिन घर पर उपस्थित बहन बेटियां व सम्बन्धी वर्ग ही इस कार्य को सम्पन्न करे। न्योता देकर किसी को न बुलाया जाये। (4) पाटा-पगड़ी रस्मः पगड़ी रस्म में, पुरूष के स्वर्गवासी होने पर, उस के निकट सम्बन्धी केवल पगड़ी ही ले जाये, पछेवड़े नही। टीका-आरता पूर्ववत ही होता रहना चाहिये। (5) अस्थि विसर्जन: अस्थि विसर्जन पहले की भांति ही परम्परागत रूप से होता रहना चाहिये, परन्तु यह जितना साधारण हो, अच्छा है।

    इसी पुस्तिका के अन्त में ‘ध्यान देने योग्य बात’े भी लिखी गई थी जो निम्नलिखित प्रकार से हैः – (1) महिलायें इस पंुस्तिका में छपे रीति रिवाजो को मान्यता दे। (2) अच्छा समाज वही है जिस में गरीब भी इज्जत व स्वाभिमान से रह सके। (3) मादक वस्तुओ का सेवन, व्यक्ति एवं परिवार की उन्नति को रोकता है। (4) फिजूल खर्च खत्म करो, बच्चो की उच्च शिक्षा में धन लगाओ। (5) बात बात में ढोल ताशे मत मंगवाओ। (6) सगाई से पहले, लड़की/लड़की रोकने की प्रथा हमारी नहीं है। (7) सगाई में केवल नजदीकी रिशतेदार ही जाये। (8) सगाई में साधारण चाय ही दी जाये, खाना न खिलाया जाये। (9) भात बन्दड़ा/बन्दड़ी के नाना मामा ही लेकर जाये, अन्य रिशतेदार नही। (10) बरात उसी दिन बिदा कर दी जाये, सभी को सुविधा होगी। (11) लड़की/लड़के के विवाह में खास खास रिशतेदारो तथा गली बस्ती वालो को ही आमन्त्रित करे। (12) पडले पर अधिक खर्च करने का कोई लाभ नही। (13) बेटी के विवाह में उपहार स्वरूप वस्तुये ;दहेजद्ध अपनी सामथ्र्य अनुसार दे। (14) उपहार स्वरूप दी गई वस्तुओ का मूल्य न गिनाओ, ना ही प्रदर्शनी लगाओ। (15) रोटी की आढ वाली प्रथा समाप्त कीजिये। (16) पीले की आढ को सरल बनाओ, विदाई के समय बेटी को पीला ओढाओ। (17) मृत शरीर के लिये कफन ही पर्याप्त है, वस्त्र न पहनाओ। (18) शोक प्रकट करने महिलाये मृतक के घर जाये, नहान घर पर करे। (19) मृत भोज का घोर विरोध करो, चाहे मृतक बड़ा-बूढा की क्यो न हो। (20) होने वाले दामाद अथवा समधी-समधन से डर कर सामथ्र्य से अधिक न खर्च करो। (21) अपनी सामथ्र्य से अधिक खर्च कर के भविष्य कष्टमय न बनाओ। (22) नशीले पदार्थ सेवन करने वालो का घर में अथवा समाज में कहीं आदर न करो। (23) पुत्र व पुत्री को समान स्नेह व िशिक्षा दो। (24) बढती हुई मंहगाई में फिजूल खर्च बढाना बुद्धिमता नही। (25) सूझबूझ और मेहनत के बिना उन्नति सम्भव नहीे। (26) अपना आदर कराना चाहो तो पहले दूसरो का आदर करो। (27) बाबा साहेब डा. अम्बेडकर व स्वामी आत्मा राम ‘लक्ष्य’ के जीवन से प्रेरणा ले।(28) जातीय उन्नति के कार्याे में रूचि ले।
  • निष्कर्ष. उपरोक्त पुस्तिका को देखने से साफ जाहिर होत है कि उस दौर में महिलाओं और बालिकाओं से भेदभाव प्रचलित था तथा समाज अनावश्यक रूप से अपने रीति रिवाजो पर खर्च करने लग गया था। समाज में एक दूसरे से ज्यादा खर्चा करने की आदत पड़ चुकी थी। वह ज्यादा से ज्यादा अनावश्यक खर्चा करने में अपनी शान समझने लग गया था जिस के कारण उन के मकान जो रैगर पुरा, बीड़न पुरा और देव नगर में थे वे काफी संख्या में बिक चुके थे। इन मौहल्लो में वे बहुसंख्यक थे अब से अल्पसंख्यक बन कर रहने लग गये थे। मेरी राय में समाज आर्थिक उन्नति के बदले रीति रिवाजो की अनावश्यक व दिखावापूर्ण परम्पराओं के दलदल में फंस गया था जिस से उन का सामाजिक व आर्थिक पतन ही आरम्भ हो गया था। इस का मुख्य कारण यह था कि उस दौर में समाज के सामाजिक नेता आज की तरह के कई सामाजिक नेताओ की तरह ढोंगी और बेईमान हो गये थे। कुछेक प्रबुद्ध लोगो ने रीति रिवाजो में संशोधन करने का प्रयास किया परन्तु अन्ततः वे भी असफल ही सिद्ध रहे। जो पतन का दौर उस समय चालु हुआ था वह पतन आज भी चालू है जिस के कारण समाज को उन्नतशील होना चाहिये था वह उतना प्रगति नही कर पाया है। मैने मेरी इस पुस्तक में पहले दिल्ली के रैगर समाज के रीति रिवाज जो मैने देखे और सुने उन का वर्णन कई जगह पर किया है जिस से कि रैगर समाज की आगे आने वाली पीढी यह जान ले कि रैगर समाज की दिल्ली में पहले क्या स्थिति थी और किन किन रीति रिवाजो और सामाजिक परम्पराओं का उस समय निवर्हन किया जाता था।

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