नशे को शत-प्रतिशत प्रतिबँधित करे

पहले आदमी शराब पीता है, फिर शराब, शराब को पीती है और अंत में शराब आदमी को निगलने लग जाती है। आज गाँवों, शहरों में उत्सव, शादी-ब्याह, जन्‌म-मरणोपरांत के समारोहों में सुपारी, पान-मसाला,बीड़ी,सिगरेट,अफीम और रियाण सभी तरह के नशेड़ी तामझामो की व्यवस्था करना जरूरी है । अमीरोँ के लिए यह परंपरा शान है किंतु गरीबोँ की कमर तोड़ने का सामान है । आज ऐसा लगता है कि नशा आदमी, परिवार और जाति समाज को सुरसा की भाँति निगलने को उतारु है । सरकार को नशीली चीजों से भारी मात्रा मे कर मिलता है इसलिए वह नशे के कारण गिरते नैतिक मूल्यो और चौतरफा दूषित वातावरण को देखकर भी मौन है । ऐसे में बीमारी रहित आदमियो की पीढ़ी तैयार करना समाज का आवश्यक कार्य बन गया है । समाजहित संकल्प लेकर सब एक आवाज पुरजोर उठाए तथा रैगर समाज मे सभी तरह का नशा प्रतिबंधित कर दिया जाये । इतिहास गवाह है कि नशे से शरीर और समाज की आत्मा खोखली हुई है । नशे से लोगों की सेहत का मिजाज बदलता है । सुपारी, गुटखा, तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट आदि नशीली चीजों के निरंतर सेवन से कैंसर का खतरा बढ़ता है । शराब की लत से लीवर की बीमारियों में बढ़ोतरी होती है । ऐसे लोगों की तबीयत कमजोर हो जाती है । नशा गरीबोँ को बदहाली और हिकारत की और धकेलता है । नशा बच्चो की पढ़ाई, परिवार की दवाई, आदमी की सेहत और समाज की भलाई मे प्रमुख अवरोध बनकर खड़ा है । जो पैसा परिवार समाज का विकास कर सकता है वही नशे के विनाश की भेंट चढ़ जाता है । नशे को नाश की जड़ जानकर रैगर जीवन में नशा छोड़ने का संकल्प ले । समाजहित में दूरगामी सोच का परिचय देकर अखिल भारतीय रैगर महासभा भी इस ओर महत्वपूर्ण कदम उठाए । सभी सामाजिक अवसरों पर सब प्रकार के नशोँ पर शत-प्रतिशत प्रतिबँध लगा दिया जावे । इससे सुंदर,खुशहाल रेगर समाज के नव- निर्माण का सपना सच होगा । समाज विकास की ओर अग्रसर होगा ।

महिला शोषण – निजात कौन दिलाएगा

       समाज में महिलाएँ माँ शक्ति का जीवित रूप है । सदियों से महिला पुरुष से घर,परिवार और समाज में संयम, सहनशीलता, संवेदना, सूझबूझ और मानवीय गुणों में अग्रणी रही है। हमारा हिंदु समाज माँ दुर्गा, सरस्वती , लक्षमी की आराधना करता है । मनुष्य मनोवांछित परिणामों और खुशहाली के लिए देवी पूजा करता है । प्रातः स्मरणीय पवित्र, निर्मल और मुक्तिदायिनी माँ गंगा रैगर समाज की कुलदेवी है । युगों- युगों से इस नाशवान संसार में मनुष्य के पापों के शमन की संस्कृति माँ गंगा से आगे बढ़ी है । मनुष्य के पापचार से विलग होकर सदाचार ग्रहण करने का पथ देवनदी गंगा है । नारी शक्ति का सबसे ऊँचा प्रतीक माँ गंगा है । इतिहास सैकड़ों नारियों के बलिदान की गाथाओँ से भरा पड़ा है । नर पर नारी भारी है । अतः उसने अपना दायरा बढ़ाया, घर-परिवार के साथ-साथ समाज, शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान, कला, संस्कृति, धर्म, अर्थ और राजनीति में महिलाओँ की संख्या बढ़ी है । यह आधी आबादी के मान-सम्मान और कुशलता के विकास का शुभ संकेत है । वर्तमान में महिलाएँ पंचायतों, नगर-परिषदों, विधानसभाओं, और संसद में अपनी क्षमताओँ से अच्छा कार्य कर रही है । किंतु आज भी विडम्बनाएँ हमें ठेंगा दिखाती है, गाँवों-शहरों में प्रति चौवन मिनट में एक महिला का बलात्कार होता है । नगरों, महानगरों, देश की राजधानी में महिलाओँ से छेड़खानी, देह शोषण के किस्से आम बात है । कमोबेश समाज में महिला शोषण की पूरी कड़ी है । अंधविश्वासी और गरीब लालन- पालन के डर, धनवान पुत्र की चाह में लिंग परीक्षण करवाकर महिला शोषण की नींव रखते है । बच्चियों को घरेलू काम के लिए अशिक्षित रखा जाता है । युवतियों को दहेज का दानव परेशान करता है । समाज में विकलांग मानसिकता वाले महिलाओँ से घर-परिवार, जाति- समाज और कार्यस्थानो पर ऊँच-नीच, भेदभाव और शोषण करते है । समाज में अनाचार, अनैतिकता का मेला है । पुरुषो का चरित्र कुछ ढीला है । इधर सरकार का नजरिया भी लचीला है । अतः समाज नारी सशक्तिकरण का प्रयास करे । आज मानवीय संस्कारवान और आत्मनिर्भर महिलाएँ ही महिला शोषण से महिलाओं को निजात दिला सकती है ।

लेखक : हरीश सावित्री सुवासिया (साहित्यरत्न)
देवली कला, पाली (राज.)