रैगर समाज के विकास में गतिवरोध एवं निराकरण

हम कौन थे, हो गए क्‍या, और होंगे क्‍या अभी ।

आओ मिलकर विचार करें, यह समस्‍याएं सभी ।।

उस परब्रह्मा द्वारा निर्मित सृष्टि की कोई सीमा नहीं है । इसमें कई राष्‍ट्र धर्म तथा जातियों को मानने वाले लोग निवास करते है, जिसमें रैगर जाति भी एक है । हिन्‍दू धर्म की सदियों से पिछड़ी हुइ हामारी रैगर जाति है, जोकि पूरे हिन्‍दुस्‍तान में एक ही ऐसी जाति है जिसमें किसी भी प्रकार का कोई फर्क नहीं है । यह बात हम गर्व से कह सकते हैं ।

मनुष्‍य एक सामाजिक प्राणी है । वह समाज में ही रहकर जीवित रह सकता है । समाज से अलग रहकर कोई भी मनुष्‍य अपनी उन्‍नती नहीं कर सकता है समाज की उन्‍नति नहीं कर सकता है समाज की उन्‍नति में ही अपनी उन्‍नति निहित है । अत: प्रत्‍येक मनुष्‍य को अपनी समाज की उन्‍नति की ओर ध्‍यान देना चाहिए ।

समाज प्रेमी वह पुण्‍य क्षेत्र है, अमर असीम त्‍याग से विलसीत ।
जिसकी दिव्‍य रश्मियां पाकर, मानवता होती है विकसित ।।

हमें यह अच्‍छी तरह से याद है कि हमारा रैगर समाज प्राचीनकाल से अत्‍यंत दयनीय दौर से गुजर रहा है । हालांकि आजादी के बाद डा. भीमराव अम्‍बेडकर, रैगर धर्मगुरू स्‍वामी ज्ञानस्‍वरूप जी महाराज, स्‍वामी आत्‍माराम जी ‘लक्ष्‍य’ तथा कई समाज सुधारकों के अथक प्रयास से आज हम इस स्थिति तक पहुँचे हैं, फिर भी हमारा समाज अन्‍य समाजों से काफी पिछड़ा हुआ है ।

अत: अपने समाज के बन्‍धुओं से संघर्ष निवेदक है कि जैसे प्रत्‍येक देश व समाज अपनी उन्‍नति करके ही ऊँचे उठते हैं, वैसे ही हमारा भी यह कर्तव्‍य हो जाता है कि इस आधुनिक युग में, अन्‍य समाजों की सभ्‍यता की दौड़ के साथ-साथ, हमें भी आगे चलकर अपने समाज का भविष्‍य उज्‍जवल करने का प्रयत्‍न करना चाहिए ।

रैगर समाज की प्रगति के मार्ग में कुछ बाधाएं :- आज हम देख रहे हैं कि भारत में निवास करने वाली जातियां दिन-प्रतिदिन प्रगति की ओर अग्रसर हो रही है । लेकिन हम कुछ सुस्‍त मालूम पड़ते हैं । जबकि हमारा समाज अन्‍य समाज से बेहतर समाज है इसकों अधिक सशक्‍त एवं विकासोन्‍मुख करने का हम सभी का दायित्‍व है । इसमें शिक्षित वर्ग का अधिक दायित्‍व बन जाता है आज के समाज में समय के अनुरूप कुछ विकृतियों का जन्‍म होता जा रहा है जिन्‍हें हमे मिलकर दूर करने या कम करने का प्रयास किया जाना चाहिए । हमारे सामने अज्ञानरूपी अंधकार के रूप में रूड़ियां, अंधविश्‍वास, शिक्षा का अभाव, स्‍वार्थ-निति, संगठन का अभाव, गुटबन्‍दी, मौसर करने की प्रथा, विवाह आदि में रूपये लेने की प्रथा (दहेज), और बाल विवाह व द्वेषता आदि विकास के मार्ग में बाधा पहुँचाने वाली बातों ने अपना विशालतम घर बना रखा है । यदि हमें सभ्‍यता की दौड़ में अन्‍य जातियों से आगे बढ़ना है, तो उपर्युक्‍त बातों की ओर अवश्‍य ध्‍यान देना होगा अन्‍यथा हमारा समाज कदापि प्रगति की ओर अग्रसर नही हो सकेगा ।

हमारे समाज की उन्‍नति के लिए निम्‍न महत्‍वपूर्ण बिन्‍दुओं पर विचार करना आवश्‍यक है ।

1. शिक्षा :- एक कहावत है कि ”शिक्षा ही समाज का दर्पण है ।” अपने समाज के प्रत्‍येक व्‍यक्ति को चाहिए कि वह अपने लड़के /लड़कियों को स्‍कूल भेजें । उन्‍हे कम से कम स्‍नातक या बारहवीं कक्षा तक तो पढ़ाना ही चाहिए और आगे शिक्षा में प्रगति के लिए भी सरकार कई सुविधाएं देती है जैसे छात्रवृत्ती, छात्रावास, किताबे, साईकिल लड़कियों को ग्रामीण क्षेत्र में आदि । हमे चाहिए कि इनका पुरा लाभ लेवें ।

शिक्षा के बिना मनुष्‍य की जिन्‍दगी अधुरी है । शिक्षा से ही व्‍यक्ति अपना व अपने समाज का रहन-सहन, खान-पान, व्‍यवहार, संस्‍कार, चरित्र, भाषा आदि में परिवर्तन कर सकता है । यदि समाज में शिक्षा का अभाव रहा तो वह अवन्‍नति की ओर जाएगा क्‍योंकि बिन शिक्षा नर पशु समान ।

2. रूढ़ीवाद :- अपना समाज अभी तक प्राचीन रूढ़ीवादी ग्रन्थियों उलझा हुआ है । जैसे मौसर करना गंगोज व डांगरी आदि करना । आज भी हम भाई लोग पूरखों की पुरानी रूढ़ी को अटल रखने के खातिर मौसर करते हैं, चाहे उस व्‍यक्ति की हैसियत हो या न हो । लोग उसे तानों द्वारा मजबूर कर, मौसर का कार्यकरवाते है फिर उसे मजबूर होकर ऋण लेकर, जमीन, जेवर बेचकर या हालि(नौकर) रहकर भी यह कार्य करना पड़ता है, जिसमें वह जीवनभर ऋण के जाल में फसा रहता है और अपने बच्‍चों की शिक्षा पर भी ध्‍यान नहीं रख पाता है । कई लोग बड़े मौसर करना अपनी शान समझते हैं । अत: मेरा कहना है कि ऐसे महंगाई के युग में मौसर नाम की बिमारी को समाज से दूर करना है तथा साथ ही साथ गंगोज, डांगरी को भी पूर्ण रूप से समाज में बन्‍द करना है ।

3. बाल विवाह :- हमारे समाज में बाल विवाह की प्रथा अभी-भी जारी है । छोटी-छोटी उम्र के बालक/बालिकाओं की शादी कर देते हैं । कई लोग धन-दौलत या एक शराब के प्‍याले के पीछे अपने बच्‍चों का ‘अनमेल-विवाह’ कर देते है । आगे जाकर जीवनभर पति-पत्‍नी सुख की सांस लेने में असमर्थ रहते हैं । कई लोग अपनी लड़की के विवाह में लड़के वालों से रूपये मांगते है, ऐसी स्थिति में गरीब व्‍यक्ति तो किसी हाल में पनप नहीं सकता है, लेकिन अभी-भी कई बन्‍धु अपनी इच्‍छानुसार धनराशि का झोला भरने के फिराख़ में रहते हैं । ये बुराई बंद होना चाहिए तथा इन्‍हें ‘परिवार नियोजन’ का ध्‍यान रखना चाहिए ।

4. दहेज :- अपने समाज में धीरे-धीर दहेज का चलन बढने लगा है विवाह के समय अधिक दिखावा करना तथा अनावश्‍यक सामान आदि दिया जाकर अपनी प्रतिष्‍ठा बढ़ाने की होड़ सी चल रही है । मेरे विचार में अगर पढ़े लिखे सम्‍पन्‍न व्‍यक्ति अगर दहेज प्रथा को बढ़ाने के बजाय उसमें कमी लाने का प्रयास करे तो में समझता हूँ कि समाज का ज्‍यादा विकास होगा ।

5. बुरी आदते :- अपने समाज में कई बुराईयों ने अपना घर कर रखा है । जैसे शराब पीना, मांस खाना, बीड़ी-सिगरेट पीना, और अन्‍य प्रकार का नशा करना । हम अक्‍सर देखते हैं कि शराबी की क्‍या दशा होती है शराब पीने से व्‍यक्ति अपना स्‍वास्‍थ्‍य खो देता है साथ ही उसका घर बर्बाद हो जाता है कई बंधु शराब पीना व धुम्रपान करना अपनी शान समझते हैं । समाज के कार्यक्रमों में भी कई बंधु शराब पीकर आते तथा कार्यक्रम तो बिगाड़ते ही है लेकिन साथ ही अन्‍य समाज के लोगों की नजरों में नीचे गिर जाते हैं । अत: यह बुराई बिलकुल बन्‍द होनी चाहिए । आज के युवाओं को चाहिए कि वे इन बुराईयों के चक्र में ना फसे और अपने परिजनों को भी इस बारे में समझाए ओर उन्‍हे इन व्‍यसनों से मुक्ति दिलाए ।

6. संगठन :- ‘संगठन में शक्ति है।’ इस मूल मंत्र को समझे और क्रियांवित करे । संगठन से बड़ी कोई शक्ति नहीं है । बिना संगठन के कोई भी देश व समाज सुचारू रूप से नहीं चल सकता है । संगठन बिना समाज का उत्थान संभव नहीं । यदि समाज को आदर्शशील बनाना चाहते हो तो संगठन की और कदम बढाओ ।

स्‍व‍जाति बंधुओं से निवेदन है कि अपने बच्‍चों को पढ़ाए लिखाएं, चरित्रवान बनाएं, सभ्‍यता की कसौटी में कसें, रूढ़ीवादी प्रपंचौ से दूर रखें और संगठीत रहे । हमेशा हर जगह विनम्रता से पेश आए, पूरी तरह ईमानदार रहे । झूठ, कपट, बेईमानी से दूर रहकर अपने आपको आगे बढ़ावे । अपनी खुद की बुराई को देखे ओर उसे दूर करे । आधुनिक युग की सभ्‍यता की दौड़ में आगे आए तथा अपनी और अपने समाज की प्रगति में योगदान निभाए ।

लेखक : चतुर्भुज खटनावलियाबघाना, नीचम (मध्‍य प्रदेश)