समाज के विकास के जिम्मेदार कौन ?

आज जिसको देखो समाज के विकास की बात करता है जिसमे, बड़े-बूढे, शिक्षित, अशिक्षित, डाक्टर, इंजीनियर, वकील, राजपत्र अधिकारी सभी शामिल है। यदि किसी से पूछा जाये कि आपने समाज के विकास के लिये क्या किया तो व्यक्ति बताता है कि मै फलाणा फलाना संस्थाओ/संघो/संगठनो (एक से अधिक) मे पदाधिकारी हूं और समाज की सेवा करता हूं। इस प्रश्‍न के उतर मे उक्त व्यक्ति का लक्ष्य ही दिशाहीन है क्योकि जो व्यक्ति एक से अधिक संस्थाओ का पदाधिकारी हो वह व्यक्ति कैसे अपने कार्यों को सफलतम रूप से अंजाम दे सकता है यही भी अपने आप मे एक बहुत बड़ा प्रशन है?, यदि उनसे यह पूछा जाये कि समाज मे उनके द्वारा किये गये विकास कार्यों के बारे मे बताए तो ले देकर ‘‘प्रतिभावान छात्रो का सम्मान समारोह या सामाजिक भवन हेतु चंदा एकत्रित करने तक सीमित है, क्या यही समाज का विकास है?, समाज के विकास मे संस्था का मूल उद्देशय शिक्षा होना चाहिये क्योकि शिक्षा ही समाज तथा देश का भविष्य तय करती है। समाज के विकास मे द्वितीय महत्वपूर्ण कार्य समाज के अधिकारों की रक्षा करना तथा समाज को दिशा प्रदान करना होना चाहिये जबकि वास्तविकता यह है कि यह संस्थाओ के मूल उद्देशयों मे शामिल नही है।

अब सबसे महत्वपूर्ण प्रश्‍न यह उठता है कि समाज के विकास मे जिम्मेदार कौन व्यक्ति है। मेरा मानना है कि जिस प्रकार परिवार के विकास की जिम्मेदारी परिवार मे सबसे बुद्विमान व्यक्ति पर होती है, उसी प्रकार समाज के विकास की जिम्मेदारी समाज भी उसी बुद्विमान डाक्टर, इंजीनियर, वकील, राजपत्र अधिकारी की होती है। समाज को दिशा देना बुद्विमान लोगो का कार्य है, आज समाज मे पिछड़ापन, अन्ध विश्‍वास, अशिक्षा, गरीबी, अधिकारो का हनन, शोषण इन सभी के लिये समाज के बुद्विमान लोग जिम्मेदार है। चाहे वो माने या न माने सच्चे अर्थों मे यदि देखा जाये तो समाज के उच्च शिक्षित वर्ग के लोग ही समाज के पिछड़ेपन के लिये जिम्मेदार है। यह ध्यान देने योग्य बात है कि भारत को आजाद किसी धनवान या गरीब व्यक्ति ने नही कराया है, इन्ही बुद्विमान लोगो ने आजाद कराया है। बुद्विमान लोगो का दायित्व है कि वे समाज के विकास मे अपना महत्वपूर्ण योगदान दे क्योकि जब तक बुद्विमान लोग समाज की मुख्य धारा मे शामिल होकर समाज का नेतृत्व नही करेंगे तब तक ना तो समाज का विकास संभव है ना ही देश का विकास संभव है।

आज अपने देश मे चारो तरफ भ्रष्टाचार का बोलबाला है। इसका एकमात्र प्रमुख कारण यह है कि देष के बुद्विमान लोग डाक्टर, इंजीनियर वकील, राजपत्र अधिकारी अपनी गाड़ी, बंगला, शानो शौकत बनाने मे लगे है उन्होने देश की परवाह करना बन्द कर दिया है जिसका नतीजा देश मे चारो तरफ सरकार नाम की कोई चीज नजर नही आ रही है। हर सरकारी काम पैसे देकर ही करवाया जा रहा है। लोगो ने राजनीति को धंधा बना दिया है जिसे देखो पैसा कमाने मे लगा है जिससे वह अपने कर्तव्यों, दायित्वो को भूल गया है तो ऐसी स्थिति मे विकास कैसे संभव है। रोजाना सुनने मे आता है कि फलाना फलाणा सामाजिक संस्थाओ मे घोटाला हो गया या फूट पड़ गई या बिखर गई, ऐसा इसलिये होता है कि जब भी समाज की बैठक होती है तो समाज के बुद्विमान लोग उसमे नही आते है, नतीजा उपस्थित व्यक्तियों मे से किसी अपरिपक्व व कम शिक्षित व्यक्ति को समाज का नेतृत्व सौंप दिया जाता है। यह ध्यान देने योग्य बात है कि जो व्यक्ति अपने जीवन मे सफल नही हुआ हो वो समाज के कार्यों को सफलतम तरीके से कैसे अंजाम दे सकता है।

आज समाज मे पिछड़ापन, अंधविश्‍वास, गरीबी, शोषण का मूल कारण बुद्विमान लोगो द्वारा समाज के प्रति अपने दायित्वो को नही निभाना है क्योकि बुद्विमान लोग ही समाज को दिशा दे सकते है, वे जब तक अपनी जिम्मेदारी नही निभायेंगे, तब तक समाज का सर्वांगिण विकास संभव नही है, ना ही ऐसा समाज अपने अधिकारो की रक्षा कर सकता है, नतीजा समाज का शोषण ऐसे ही होता रहेगा। जहां देखो दलित बुद्विमान लोग समाज के विकास की अच्छी-अच्छी बाते करते है जबकि उनके वास्तविक सामाजिक कार्यों, अंशदानो पर नजर डाले तो बिल्कुल नगण्य है जबकि उनकी बडी बड़ी बाते केवल अच्छे अच्छे भाषणो तक सीमित होकर रह गई है।

अक्सर सुनने मे यह आता है कि दलित बुद्विमान लोग समाज मे पिछड़ेपन, अंधविश्‍वास, अशिक्षा, शोषण तथा अधिकारो के हनन की बात करते है लेकिन वे इस बात पर ध्यान नही देते है कि ऐसा क्यो हो रहा है तथा उनके उपायों पर विचार नही करते और अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नही करते है। यदि आप चाहते है कि समाज का विकास हो तो समाज के बुद्विमान लोगो को त्याग की भावना रखते हुए आगे बढकर समाज का नेतृत्व करना होगा ताकि समाज का सर्वांगिण विकास हो सके। आज समाज का विकास उसी प्रकार संभव है जिस प्रकार व्यक्ति का विकास संभव है क्योकि व्यक्ति के विकास पर ही समाज का विकास टिका हुआ है। बिना अधिकारो की सुरक्षा व्यक्ति की सफलता की उम्मीद करना बेईमानी है। हमे अपने अधिकारो की सुरक्षा के लिये सजग व जागरूक होना होगा।

लेखक : कुशाल चौहान, एडवोकेट

अध्यक्ष, रैगर जटिया समाज सेवा संस्था, पाली (राज.)