पैंतीस लाख के पार फिर भी समाज दरकिनार, आखिर ऐसा क्यो ?

राजस्‍थान राज्‍य में अनुसूचित जाति में रैगर समाज जनसंख्‍या में सभी जातियों से सबसे ऊपर है । विकीपीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार राजस्‍थान में रैगर समाज की जनसंख्‍या 35 लाख 26 हजार, 478 है जबकि अन्‍य राज्‍य की बड़ी जातियों में चमार-भाम्‍बी 24,65,563 मेघवाल 20,60,454 कोली 4,53,074 खटीक 3,30,816 सरगरा 1,13,947 धोबी 1,51,612 ढोली 1,01,589 भंगी-चूड़ा मेहतर 3,75,326 आदि है जो राजस्‍थान में अपना वजूद रखती है । इस आंकलन से यह ज्ञात होता है कि रैगर समाज राजस्‍थान में 35 लाख को पार करने के बाद भी दरकिनार किया जाता रहा है । ऐसा क्‍यो ? इस विषय में अब समाज को सोचने की महत्ती आवश्‍यकता है चूँकी वर्तमान समय में सांसद, विधायक तथा अन्‍य राजनीतिक पदों पर संख्‍या ना के बराबर है । ऐसी स्थिति में समाज को जागने की जरूरत है और राजनैतिक पार्टियों को बता देना होगा कि हम किसी से कम नहीं । ऐसी स्थिति में हमें भी हुंकार भरने की महत्ती आवश्‍यकता है कि हमारा समाज भी पीछे नहीं है । जहां हमारा समाज राजनैतिक दलों से टिकिट मांग – मांग कर थक गया लेकिन उनके कानों पर एक भी जू तक नहीं रेंगी, ओर राजस्‍थान में रैगर समाज की जनसंख्‍या 35 लाख के पार होते हुए भी राज्‍य में अग्रणी राजनीतिक दलों ने मात्र तीन बंधुओं को चुनाव लड़ने का मौका दिया जबकि दिल्‍ली में एक सीट करोलबाग पर दोनों रैगर प्रत्‍याशी आमने-सामने है जोकि किसी भी दृष्टि से न्‍यायसंगत नहीं है जिससे समाज में भारी रोष व्‍याप्‍त है ।

इस बिन्‍दु पर समाज को गंभीरता से विचार विमर्श करने की आवश्‍यकता है कि हमारा समाज राजनीतिक दृष्टि से किस दिशा में जा रहा है और अब आने वाले समय में हमें इस विषय को किस प्रकार देखना है अखिर समाज को कम से कम अपने अधिकारों के प्रति तो शर्मसार होना ही चाहिए । मात्र दोषारोपण से समाज का विकास नहीं होगा बल्कि त्‍याग, मेहनत और सेवाभाव से ही आशा की कोई किरण दिखाई देगी । समाज के संगठनों की इसमें कितनी भूमिका रही और उनका प्रभाव कितना सरकारक रहा यह एक विचारणिय प्रशन है, अब समाज के समस्‍त छोटे बढ़े संगठनों को एक जूट होकर अपनी आवाज़ बुलंद करना होगी जोकि हमारे आने वाले भविष्‍य के लिए समाजहित में एक अहम कदम होगा ।