गोत्र परिवर्तन क्यों?

पिछले कई सालों से देखा जा रहा हैं कि वर्तमान में समाज का शिक्षित वर्ग अपने गोत्र के नाम को परिवर्तन करने की होड़ में लगा हैं। इससे अपने ही समाज में भ्रांतियां पैदा हो रही है। इस परिवर्तन से हम अपने स्वजातिय बन्धु को पहचान ही नहीं पाते हैं। ओर इसके फलस्‍वरूप हमारे बीच दुरियां और बढ जाती है।

प्रिय बन्धुओं साहित्य समाज का दर्पण है। इस युग में शिक्षा के विकास के साथ ही रैगर समाज में साप्ताहिक पाक्षिक व मासिक पत्रिकाएं, देश के और विशेष तौर पर राजस्थान के कई शहरों से निकल रही हैं। जोकि एक सराहनीय कार्य है। आज का साहित्य आने वाली पीढी के लिये मार्ग दर्शन का काम करता हैं। इन पत्रिकाओं में प्राचीन व परिवर्तित दोनों प्रकार के गोत्र पाठकों को पढने को भेजते हैं। आज का साहित्य 50-60 साल बाद हमारे बच्चों के लिये पत्थर की लकीर साबित होगी। प्राचीन गोत्र के बजाय नया बदला हुआ स्वरूप साहित्य में उपलब्ध होगा। कुछ समय पश्चात पुराने गोत्र हमारी याददास्त से बाहर हो जायेगें। तथा जो जैसा साहित्य में उपलब्ध होगा वही हमारे गोत्र की पहचान बन जायेगी। परन्तु जो अशिक्षित रह गये हैं अथवा जो दूर-दराज के गाँवों में रहते हैं जिन्हें साहित्य, पाक्षिक, मासिक पत्र पढने को नहीं मिलते हैं, वे तो नये गोत्रों को जानने, पढने से वंचित रह जाते हैं । उन्हें इस परिवर्तन का कोई आभास नहीं होता हैं । ऐसे में सम्भव है कि एक ही गोत्र में शादी-सम्बन्ध होने लगेंगे । क्योंकि जिसने गोत्र के नाम का परिवर्तन किया है, एक दो पीढी के बाद पुराना गोत्र भूल जाते हैं या उस नाम को याद रखने की जरूरत नहीं समझेंगे । यह हकीकत हैं ।
विभिन्न सम्मेलनों में जानें का अवसर मिलता है तो कई बन्धुओं से मुलाकात होती है । जिज्ञासावश जाति बन्धु पूछ लेते हैं कि चौहान, खेतावत एवं कुलदीप कौन सी गोत्र वाले लिखते हैं । जितना जानते हैं उतना तो बता देते हैं । जो अपनी समझ से बाहर होते है उनके लिए अनभिज्ञता ही दर्शानी पड़ती है ।

नीचे कुछ गोत्रों की सूची, आपकी जानकारी हेतू दी जा रही है । इससे मालूम होगा कि किस गोत्र का क्या परिवर्तित नाम का उपयोग हो रहा है ।

क्रमांकप्राचीन (असल) गोत्रपरिवर्तित नाम
1कुर्ड़ियाकुलदीप
2कंवरियाकंवर
3खटनावलियाखाण्डेकर, नवल, खटनाल, खन्‍ना
4नुवालनवल
5सिंवासियाचौहान, खेतावत
6चोमियाचौहान
7बालोटियाभट्ट
8मुंडोतियामुणोत
9उदेनियाउदय
10उंदरीवालउदय
11जाटोलियाजाटोल
12धौलपुरियापंवार, धवल
13उजीरपुरियाओजवाणी
14चोरोटियाचोरड़िया
15सुनारीवालसुनारिया
16फलवाड़ियाफुलवारी
17जागरीवालजागृत
18मुरदारियामुरारी
19रिठाड़ियाराठी, राठौड़
20गुसाईंवालगोस्‍वामी
21जलुथरियाजलथानी
22अटोलियाअटल
23नगलियानवल, नागर
24सबलानियासबल

वर्मा, कमल, आर्य इत्यादि

कई बंधु आज भी नहीं जानते कि आर्य, वर्मा और कमल शब्द किस गोत्र का परिवर्तित रूप है । उपरोक्त तालिका से मालूम होता हैं कि नुवाल और खटनरवलिया दोनों ही गोत्र वाले नवल शब्द का प्रयोग करते हैं, चोमिया चौहान लिखते हैं । सिंवासिया, चौहान और खेतावत शब्द का प्रयोग करते हैं । आखिर ऐसा क्यों ? इस प्रकार गोत्र के नाम का परिवर्तन करने से हमारी शोभा में चार चाँद तो नहीं लग जाते ?

जो गोत्र इस वक्त प्रचलित हैं उनमें कोई भी नाम, अपशब्द या भद्दा नहीं लगता हैं जिसे बोलने या बताने में हमें शर्म महसूस होती हो । इससे विपरीत महाजनों में कई गोत्र ऐसे हैं जिनके उच्चारण से भद्दापन महसूस होते हुए भी वे लोग उन शब्दों का उपयोग गर्व से करते हैं । उन्होंने कभी ऐसे शब्दों को बदलने की कोशिश नहीं की । क्या उनमें शिक्षा की कमी हैं ? नहीं, सच तो यह हैं कि उनमें शिक्षा का प्रसार और प्रचार शत-प्रतिशत हैं फिर भी वे असलियत को बदलने की कोशिश नहीं करते ।

महाजनों के कुछ गोत्र इसप्रकार हैं :- कांकरिया ,कंवाड, काठेड, कोचर, खाटेड, खाटड़िया, खटवड, गोंगड, गुलगुलिया, डूनीवाल, टाटिया, भड़कंतिया, सियाल, हिंगड़, पितलिया, तुरखिया, बरड़िया इत्यादि । इन शब्दों का प्रयोग वे गर्व के साथ करते हैं तथा उनके साहित्य में उपलब्ध हैं ।
हम गोत्र बदलकर या दूसरी जाति का गोत्र अपने लिए उपयोग कर, हम उनके साथ बेटी व्यवहार तो नहीं कर सकते ओर न वे हमें अपनी बेटी ही दे देगें । उल्टा गोत्र की सच्चाई सामने आने पर, अन्य व्यक्ति हमसे घृणा करने लगेंगे ।

अतः समाज के बन्धुओं से अपील हैं कि स्वहित एवं समाज के हित में अपनी गोत्र का परिवर्तन करें । अपनी मूल गोत्र को ही अपने नाम के साथ लगाए एवं अन्‍य को भी अपनी मूल गोत्र ही बताए ।

भव्‍वतु सव्‍व मंगल !!!

लेखक :- आसूलाल कुर्ड़िया (ब्‍यावर, राजस्‍थान)