एक गरीब आदमी कड़ी मेहनत, मजदुरी कर के पाई-पाई जमा करता है ताकि उसके बाल बच्चों का लालन-पालन अच्छे से अच्छा हो । ऐसी सोच हर मां-बाप की होती है । लेकिन कई बार हालात ऐसे खेडे़ हो जाते है कि करें भी तो क्या करें ? वह समाज की रिति-रिवाजों के समाने बेबस है उसकी हालात दो जून की रोटी तक भी सिमित नही । ऐसी हालात में वह...Read More
1. वर्तमान समाज व्यवस्था गरीबों के शोषण की व्यवस्था :- वर्तमान समाज-व्यवस्था का ताना-बाना बनाने वाले सुविधाभोगी वर्ग ने इस तरह बनाया है जिसमें श्रमजीवी कर्मजीवी, मेहनतकश गरीब जन्म से मरण तक धार्मिक-कर्मकाण्डों, सामाजिक रिस्मों-रिवाज़ों, जन्म-परण-मरण के संस्कारों में अंधा होकर धर्म, पुण्य प्रतिष्ठा के झूंठे भुलावों में घाणी के बल की भांति चक्कर काटता रहे । रात-दिन खून पसीना बहा कर मुश्किल से अपना व बच्चों का पेट पालने लायक...Read More
आज सामाजिक संस्थाओं के चुनाव की बात करे, तो हमे सर्वप्रथम इस बिन्दु पर विचार करना होगा कि, हमारे सामाजिक नेतृत्व का चुनाव कैसे किया जाना चाहिये, चुनाव कि बात करे तो इसमे इस बात की अहम् भूमिका है, कि सामाजिक संस्थाऐ समाज कि सेवाओं के लिए बनी है यह कोई राजनैतिक मंच नही है। जिस प्रकार राजनैतिक नेतृत्व के चुनाव मे साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति का उपयोग...Read More
जहां तक प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी का प्रश्न है:- वर्तमान परिस्थितियों में इसके लिए ढांचा तैयार करने में कुछ समय चाहिए लेकिन यदि हम तुरन्त करना चाहते है तो हमें अपने आस पास के प्रतिभावान बच्चों को चिन्हित कर उन्हें अच्छे कोचिंग संस्थाओं में कोचिंग दिलानी चाहिए । इसके लिए मेरा मानना है कि एक फण्ड बनाया जाये । जिसमें उन सभी लोगों से अंशदान लिया जायें जो आज अपने अपने...Read More
पहले आदमी शराब पीता है, फिर शराब, शराब को पीती है और अंत में शराब आदमी को निगलने लग जाती है। आज गाँवों, शहरों में उत्सव, शादी-ब्याह, जन्म-मरणोपरांत के समारोहों में सुपारी, पान-मसाला,बीड़ी,सिगरेट,अफीम और रियाण सभी तरह के नशेड़ी तामझामो की व्यवस्था करना जरूरी है । अमीरोँ के लिए यह परंपरा शान है किंतु गरीबोँ की कमर तोड़ने का सामान है । आज ऐसा लगता है कि नशा आदमी, परिवार...Read More
आर्थिक सुधारों के पश्चात भी समाज के समक्ष अभी भी कई सामाजिक चुनौतियाँ है सामाजिक कुरीतियों, विकृतियों और अप्रांसगिक मान्यताओं के विरुद्ध जन जागरण अभियान…..