Samajik Lekh

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चलिए आज हम बात करते है, अपने सामाजिक दायित्व की । यह ठीक वैसा ही प्रश्न है, जैसा कि, एक संतान का अपने माता-पिता के प्रति क्या दायित्व और जवाबदेहीता होना चाहिये । वैसे आम तोर पर हमेशा बात लेने की आती है, जैसे- मुझे क्या मिलेगा, मुझे क्या दिया, मेरा क्या फायदा होगा, मेरा...
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19 वीं शताब्दी के प्रारम्‍भ में दलित आंदोलन कि शुरूआत हिन्दुओ के भीतर ही हुई, जिसमे छुआछुत, मंदिरो मे जाना आदि समस्याओ के निराकरण स्वरूप इसका प्रारम्भ हुआ । 20 वीं शताब्दी के प्रारम्भ मे दलित आंदोलन कि शुरूआत महाराष्ट्र मे हुई जिसमे विधान मंडल मे हिस्सेदारी, पृथक निर्वाचन योजनाओ मे हिस्से की मांग की...
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हिन्‍दू-धर्म व समाज व्‍यवस्‍था के अनेक संस्‍कार व मान्‍यताये अपराध बन गये :- हजारों वर्षों के धार्मिक अंधी आस्‍था व वर्ण व्‍यवस्‍था के काले युग में जन्‍मी-पनपी अनेक मान्‍यताएं, परम्‍पराएं व धार्मिक अनुष्‍ठान वर्तमान वैज्ञानिक व सामाजिक राजनैतिक स्‍वतंत्रता के युग में अपराधों की श्रेणी में आ चुके है । इस देश की संसद व विधान...
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भारत विभिन्‍न धर्मों का संगम स्‍थल है जो इसकी सांस्‍कृतिक एकता का प्रतिरूप हैं । यहाँ पर धर्म व सम्‍प्रदायों की पहचान उनके त्‍यौहारों उत्‍सवों, पूजा अर्चना तथा आराध्‍य देवी-देवताओं में समाहित है । इय जगत में ब्रह्मा-सृष्टिकर्ता, विष्‍णु-पालनकर्ता व महेश-संहारकर्त्ता के रूप में देवीय कार्यों को माया मानकर करीब 33 करोड़ देवी-देवताओं की श्रद्धा...
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समाज की उत्‍पत्ति : आदिकाल का मानव ही हमारे समाज का जन्‍मदाता है । समाज शब्‍द ‘सभ्‍य मानव जगत’  का सूक्ष्‍म स्‍वरूप एवं सार है । सभ्‍य का प्रथम अक्षर ‘स’ मानव का प्रथम अक्षर ‘मा’ जगत का प्रथम अक्षर ‘ज’ इन तीनों प्रथम अक्षरों के सम्मिश्रण से समाजशब्‍द की उत्‍पत्ति हुई, जो सभ्‍य मानव जगत का प्रतिनिधित्‍व एवं प्रतीकात्‍मक शब्‍द है । समाज की...
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समाज शब्‍द ‘सभ्‍य मानव जगत’ का सूक्ष्‍म स्‍वरूप एवं सार है । सभ्‍य का प्रथम अक्षर ‘स’ मानव का प्रथम अक्षर ‘मा’ जगत का प्रथम अक्षर ‘ज’ इन तीनों प्रथम अक्षरों के सम्मिश्रण से समाज शब्‍द की उत्‍पत्ति हुई, जो सभ्‍य मानव जगत का प्रतिनिधित्‍व एवं प्रतीकात्‍मक शब्‍द है । यह समाज की परिभाषा है । बन्‍धु ही समाज का सच्‍चा निर्माता, सतम्‍भ एवं अभिन्‍न अंग है...
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बचपन जो एक गीली मिट्टी के घडे के समान होता है इसे जिस रूप में ढाला जाए वो उस रूप में ढल जाता है । जिस उम्र में बच्चे खेलने – कूदते है अगर उस उमर में उनका विवाह करा दिया जाये तो उनका जीवन खराब हो जाता है ! तमाम प्रयासों के बाबजूद हमारे...
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स्वैच्छिक रक्तदान एक ऐसा पुनीत सेवा कार्य है, जिसका कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि रक्तदान द्वारा किसी को नवजीवन देकर जो आत्मिक सुख प्राप्त होता है, उसका न तो मूल्यांकन किया जा सकता है और न ही उसे शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है अर्थात् स्वैच्छिक रक्तदान ‘महादान’ है । जरा सोचें आज किसी...
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