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‘संगठन में शक्ति है ।’ इस मूल मंत्र को समझे और क्रियांवित करे । संगठन से बड़ी कोई शक्ति नहीं है । बिना संगठन के कोई भी देश व समाज सुचारू रूप से नहीं चल सकता है । संगठन ही समाज का दीपक है- संगठन ही शांति का खजाना है । संगठन ही सर्वोत्कृषष्ट शक्ति है...
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जीवन जीना भी एक कला है अगर हम इस जीवन को किसी Art-Work की तरह जिए तो बहुत सुन्दर जीवन जिया जा सकता है ! वर्तमान में जब चारों ओर अशांति और बेचैनी का माहौल नजर आता है । ऐसे में हर कोई शांति से जीवन जीने की कला सीखना चाहता है । जीवन अमूल्य...
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समाज शब्‍द ‘सभ्‍य मानव जगत’ का सूक्ष्‍म स्‍वरूप एवं सार है । सभ्‍य का प्रथम अक्षर ‘स’ मानव का प्रथम अक्षर ‘मा’ जगत का प्रथम अक्षर ‘ज’ इन तीनों प्रथम अक्षरों के सम्मिश्रण से समाज शब्‍द की उत्‍पत्ति हुई, जो सभ्‍य मानव जगत का प्रतिनिधित्‍व एवं प्रतीकात्‍मक शब्‍द है । यह समाज की परिभाषा है । बन्‍धु ही समाज का सच्‍चा निर्माता, सतम्‍भ एवं अभिन्‍न अंग है...
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मानव एक सामाजिक प्राणी है । ‘प्राणी’ इस जगत का सर्वाधिक विकसित जीव है ओर इस समाज के बिना उसका रहना कठिन ही नहीं असंभव है । माता-पिता, भाई-बहन, रिश्‍तेदारों आदि लोगों को मिलाकर ही इस समाज की रचना होती है । समाज के बिना मानव का पूर्ण रूप से विकास होना सम्भव ही नहीं...
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बचपन जो एक गीली मिट्टी के घडे के समान होता है इसे जिस रूप में ढाला जाए वो उस रूप में ढल जाता है । जिस उम्र में बच्चे खेलने – कूदते है अगर उस उमर में उनका विवाह करा दिया जाये तो उनका जीवन खराब हो जाता है ! तमाम प्रयासों के बाबजूद हमारे...
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        आलस्य मनुष्य का शत्रु है । मनुष्य स्वभाव में आलस्य का भाव स्वाभाविक रूप से रहता है । कर्तव्य कर्मो से जी चुराने का नाम आलस्य है । आलस्य ऐसा दोष है जिससे मनुष्य अपने वर्तमान और भविष्य दोनों को नष्ट कर देता है । आलस्य के कारण ही मनुष्य उन्नति के साधनों को खो...
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हमारे जीवन मे ‘अनुशासन’ एक ऐसा गुण है, जिसकी आवश्‍यकता मानव जीवन में पग-पग पर पड़ती है। इसका प्रारम्‍भ जीवन में बचपन से ही होना चाहिये ओर यही से ही मानव के चरित्र का निर्माण हो सकता है । अनुशासन शब्द तीन शब्दों से मिलकर बना है – अनु, शास्, अन, । विशेष रूप से...
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स्वैच्छिक रक्तदान एक ऐसा पुनीत सेवा कार्य है, जिसका कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि रक्तदान द्वारा किसी को नवजीवन देकर जो आत्मिक सुख प्राप्त होता है, उसका न तो मूल्यांकन किया जा सकता है और न ही उसे शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है अर्थात् स्वैच्छिक रक्तदान ‘महादान’ है । जरा सोचें आज किसी...
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‘‘इन्टरनेट की दुनिया में रैगर समाज’’ जैसा की नाम से ही स्पष्ट है कि, हम क्या कहना चाह रहे हैं । बात जब विकास की हो तो, विकास मे तकनीकी और सामाजिक विकास, सभी शामिल आते हैं । तकनीकी और सामाजिक परिवेश में आज बदलाव का दौर चल रहा है । जिसके कारण आज सामाजिक...
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गत दिनों अपने आपको राष्ट्रीय संस्था के रूप मे प्रचारित करने वाली महासभा के चुनाव सम्पन्न हुए। कहने को तो, राष्ट्रीय स्तर जबकि, वास्तविकता देखे तो, पता चलेगा कि संख्या की दृष्टि से, किसी कस्बे की संस्था लगती है तो आप कहेगे कैसे? आप ही देखिये की, भारत देश मे रैगर समाज की आबादी लगभग...
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