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(दायित्‍व बोध) : (आत्‍म शोध) रैगर समाज का इतिहास शताब्‍दियों पुराना है लेकिन इतिहास से इस बात का साक्ष्‍य नहीं मिलता कि पिछली शताब्दियों में समाज सुधार के प्रयास किये गये हो । किन्‍तु समय के बदलते परिवेश के साथ समाज में फैली कुरितियों को दूर करने के लिए पिछले कई वर्षों से समाज सुधारकों/समाज...
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(समाज उत्थान में बाधक कारण और निदान) भारत वर्ष की महानता में समस्‍त जातियों वर्गों का महत्‍पूर्ण योगदान रहा है । हमारा रैगर समाज भी अन्‍य समाजों की तुलना में त्‍याग बलिदान, देश सेवा, में कभी पीछे नहीं रहा समय आने पर अपनी बहादूरी, दानशीलता व विद्वता का परिचय दिया है । जिस-जिस समाज ने...
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पिछले कई सालों से देखा जा रहा हैं कि वर्तमान में समाज का शिक्षित वर्ग अपने गोत्र के नाम को परिवर्तन करने की होड़ में लगा हैं। इससे अपने ही समाज में भ्रांतियां पैदा हो रही है। इस परिवर्तन से हम अपने स्वजातिय बन्धु को पहचान ही नहीं पाते हैं। ओर इसके फलस्‍वरूप हमारे बीच...
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कोई भी समाज तब तक संगठित नही हो सकता जब तक की उसका कोई धरातल नही हो, धरातल से आशय उस जमीन से है, जिस पर किसी भवन की नींव लगाई जाती है तथा संगठन की शुरूआत उसी नींव से प्रारंभ होती है। आज हम एक ऐसे विषय के बारे मे जानने व समझने जा...
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आपने बहुत कुछ देखा सुना होगा लेकिन कुछ सिलसिले ऐसे होते है । जिनका जिकर सुनने में भी अजीब लगता हैं । सुनते ही दिलों दिमाग में हलचल सी मचने लगती है । अगर कोई गिरता है तो हम उसको उठाते है उसकी मदद करते है । लेकिन यहॉ पर गिरे हुए को और ज्यादा...
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वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए, जो स्थिति बन रही है, उसके तहत् अखिल भारतीय रेगर महासभा के संविधान में काफी हद तक बदलाव की आवश्यकता है। आज रेगर समाज संख्याबल में ज्यादा होते हुए भी अन्य समाजों की तुलना में पिछङा हुआ है। जबकी अन्य समाज आज राजनितिक, सामाजिक, आर्थिक, प्रशासनिक, संसाधन, एकता, धार्मिक दृष्टिकोण...
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समाज में दो तरह का बुद्धिजीवी वर्ग है, एक तो वो जो पढ़ लिखकर डिग्रिया हासिल कर ऊंचे ऊंचे पदों पर बैठ गया जिसे बुद्धिजीवी वर्ग मान लिया गया। दुसरा वह जो पढ़ा लिखा है या नहीं चाहे डिग्री या पदधारी है या नहीं है लेकिन हर बात को तर्क की कसौटी पदर उतारता है...
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रैगर समाज में बच्‍चों और युवाओं में गजब प्रतिभा है। ज्ञान, विज्ञान, इंजीनियरींग, शिक्षा, उद्योग, सरकारी नौकरियों, राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में रैगर प्रतिभाओं को आजादी से पहले अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन का अवसर नहीं मिला था, मगर अब राष्‍ट्र, प्रान्‍त एवं क्षेत्रीय स्‍तर पर कीर्तिमान स्‍थापित कर रहे हैं । दिल्‍ली निवासी श्री अशोक...
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1931 की जनगणना के बाद 2011 की जनगणना में जाति के आधार पर भी जनगणना करने का मानस भारत सरकार ने बना लिया है । वसुधैव कुटुंबकम एवं 21 वी सदीं के भारत में जाति की बात करना कुछ लोगों की नजर में पुरानी विचारों वाला है। किन्तु ये लोग ही जाति के विकास एवं...
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भारत में सर्वप्रथम जूलाई, 1902 में कोल्हापुर की रियासत में छत्रपति साहूजी महाराज ने जनसंख्या के आधार पर जातियों को नौकरी में आरक्षण दिया था। चुकिं यह राजा का आदेश था, अतः सीधा विरोध न कर, पुरोहितों ने बकरे के खून से अपने हाथ रंग कर दीवारों-दरवाजों पर अन्धेरी रात में चिन्ह लगा दिया। फिर...
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